Sunday, October 30, 2011

‘जन्मशताब्दी गुरूवर की आई’


सौ साल के बाद यह मंगल बेला आई....
जन्मशताब्दी गुरूवर की आई।
              हरिद्वार की पावन धरती
              आज फिर से है जगमगाई
              अलख जगाकर रौशन कर दो
              जन्मशताब्दी गुरूवर की आई।
नई उमंग है नई तरंग है
चारो तरफ हर्षोल्लास है
इस धरती पर सतयुग लाने
जन्मशताब्दी गुरूवर की आई।
              गुरूवर के सपने सच होंगे
              मन में यह विश्वास है
              उनके सद्विचारों को फैलाने
              जन्मशताब्दी गुरूवर की आई।
गुरूदेव का आशीष है हम पर
श्रद्धा से गुणगान करें
सत्पथ पर अग्रसर कराने
जन्मशताब्दी गुरूवर की आई।
             देश-विदेश के लाखों लोग होंगे
             इस दिव्य अलौकिक केन्द्र में
             विश्व बन्धुत्व का भाव जगाने
             जन्मशताब्दी गुरूवर की आई।
समता का पाठ पढ़ाने
राग-द्वेष सब बैर मिटाने
अपना आप बोध कराने
जन्मशताब्दी गुरूवर की आई।


Tuesday, October 25, 2011

एक अद्भुत अनुभव टिहरी का


 
जीवन एक यात्रा है। विभिन्न शहरों और स्थलों में भ्रमण करते समय मन में कभी-कभी यह विचार आता है कि मानो जन्नत का दर्शन हो गया है तथा वहां बस जाने का मन करता है। कुछ जगह ऐसी होती हैं जहां कदम रखते ही मन पवित्र अनुभूतियों से भर जाता है, श्रद्धा से शीश झुक जाता है। ऐसी ही एक जगह है उत्तराखण्ड के गढ़वाल में स्थित नई टिहरी में है। ओम की गूंज, शंखनाद, हवन का धुआं और सुगंध का एहसास होने लगता है और हम पहुच जाते हैं मां सुरकण्डा के दर्शन को। देवभूमि उत्तराखण्ड ही एक ऐसी जगह है जहां प्रकृति और उसका कृतिकार दोनों एक साथ मौजूद हैं। पहाड़, नदी, झरने, हर तरफ हरियाली तथा सुंदर मौसम सभी यहां उपलब्ध है। साथ-साथ यहां कई प्राकृतिक और ऐतिहासिक स्थल भी दर्शनीय हैं।





     टिहरी में ठण्डी हवा का एहसास है। यहां की हरी-भरी वादियॉ मन की गहराईयों को छूती हैं तथा आसमान को छूते चीड़ व देवदार के वृक्षों की तो छटा ही निराली है। हिमालय की श्रृंखला, झील की सुन्दरता व उनके बीच बादलों के अनोखे दृश्य मानो हमें अपनी ओर आकृषित करते हों। सुबह का सूरज मानो अपनी किरणों को फैलाकर हिमालय को सोने की तरह चमका रहा है। बादल हमारे बराबर खड़े होकर यह दर्शा रहे हों कि जैसे हम स्वर्ग में आ गये हों। प्राकृतिक सौन्दर्य का ऐसा दृश्य जो आपके दिल में बस जाए और आप वहां से जाना ना चाहें। बरसात के बाद यह प्राकृतिक दृश्य और भी मनोहारी लगने लगता है। यह सुन्दरता दिल को छूने वाली होती है। 


   


    उत्तराखण्ड के इस खूबसूरत शहर में कुछ धण्टों में ही पहुचा जा सकता है।हरिद्वार से टिहरी लगभग 110 किमी. दूर है। ये लगभग 3-4 धण्टे का सफर है। हम हरिद्वार से बस से सुबह निकले। मौसम बहुत सुहावना है और हम ठण्डी-ठण्डी हवा के साथ गाते-गुनगुनाते ऋषिकेश, नरेन्द्र नगर, चम्बा के रास्ते से होते हुए पहुच गये टिहरी। टेढ़े-मेढ़े रास्ते, आकाश छूते वृक्ष, कलकल करते झरने, सूरज की किरणों के साथ ठण्डी-ठण्डी हवा, सच में किसी को भी रोमांचित कर सकता है। यहां पर हम गायत्री शक्तिपीठ में रूके। यहां का शान्त वातावरण सचमुच बहुत ही अद्भुत है। थोड़ी देर रूकने के बाद हम कोटेश्वर के लिए निकले। यह यहां से लगभग 40 किमी. दूर है। यहां पर शिव जी का एक प्राचीन मन्दिर है।


      
    कुछ कारण वश हम वहां नहीं पहुच पाए किन्तु रास्ते में हमने ‘टिहरी डैम’ देखा जो एशिया का सबसे बड़ा डैम है। कहते हैं कि पुराना टिहरी इस डैम के बनने से डूब गया। यहां का रास्ता बहुत ऊगड़-खाबड़ है लेकिन यहां का नजारा सचमुच देखने लायक है। ठण्डी-ठण्डी हवा जो हिमालय छूकर आई हो, रूई जैसे बादल हमारे पास आ रहे हो, हरे-भरे वृक्ष खुशी से झूम रहे हों, तो उसे देखकर लगता है कि हम किसी स्वप्नलोक में आ गये हो। कुछ ऐसे ही सपनों के साकार रूप को देखते हुए हम गुरूद्वारे गये और मत्था टेका। शाम होते ही हम शक्तिपीठ वापस आ गये।


  




 




     रात का खाना हम सबने मिल कर बनाया जो कि वास्तव में बहुत स्वादिष्ट बना था। साथ में खाना खाने के बाद हम थोड़ी देर छत पर टहले और उस विशेष अनुभूति का अनुभव किया। रात में पहाड़ों पर चमकने वाली लाइट ऐसी प्रतीत हो रही थी कि मानो दीपावली हो। कुछ देर हमने साथ बैठकर मनोरंजन किया और फिर हम सब सोने चले गये। सुबह सूर्य की किरणें जब हमारे ऊपर पड़ी तब हमारी ऑख खुली और हमने उस हसी नजारे को देखा जो कि बहुत ही लुहावना था। सूरज की किरणें बर्फ को चांदी जैसा चमका रही हैं तथा यही चमक पूरे वायुमण्डल पर एक नई आभा बिखेर रही है। इतने दिव्य वातावरण में चिड़ियों का चहचहाना व मधुर-मधुर संगीत जैसे अपनी ओर खींच रहा हो। इसके बाद हम मॉ सुरकण्डा देवी के दर्शन को निकले।



      


     





     पहले हम बस से चम्बा गये जो कि यहां से 40 किमी. की दूरी पर है। फिर चम्बा से हमने गाड़ी की। गाड़ी से लगभग 30 किमी. की दूरी तय करने के बाद हमने चढ़ाई शुरू की। जय माता दी के जयकारे लगाते हुए हम पहुच गये उस स्थान पर जिसके लिए हमारे मन में असीम इच्छाएं थीं मॉ सूरकण्डा के दरबार में। यह एक शक्तिपीठ है। मान्यता है कि 51 शक्तिपीठों में यह बहुत ही महत्वपूर्ण शक्तिपीठ है जहां मॉ भगवती का सिर गिरा था। यहां के दिव्य वातावरण में मॉ की पूजा-अर्चना कर एक अद्भुत शान्ति प्राप्त हुई। मुख्य मन्दिर अभी निर्माणाधीन है।





    यहां के प्राकृतिक दृश्यों का गुणगान करना अत्यन्त कठिन है। यहां का मौसम बहुत ही सुहावना रहता है। कभी धूप कभी छांव जैसी स्थिति बनी रहती है। ठण्डी-ठण्डी हवा के साथ धूप व पानी की बौछारें। बादल ऐसे लगते हैं जैसे उनको आसानी से पकड़ा जा सकता है। यहां से सहारनपुर, देहरादून, मसूरी आदि के आस-पास के गांव भी दिखाई देते हैं। कुछ देर वहां रूकने के बाद हम नीचे उतर आए। वहां हमने मैगी खाई और चाय पी और फिर हम चल दिए पहाड़ों की रानी मसूरी। यहां का रास्ता बहुत ही सकरा है एक तरफ आकाश छूते पहाड़ तथा दूसरी तरफ धरती नापती खाईं। साथ ही यहां के गोल घुमावदार रास्ते, जो पृथ्वी के साथ हमें भी घूमने का एहसास कराते हैं।


     
  लगभग डेढ़ धण्टे में हम मसूरी पहुच गये। समय न होने के कारण रास्ते में पड़ा इको पार्क घनोल्टी व मसूरी नहीं घूम पाए, किंतु बाजार के रास्ते से होते हुए हम किताब घर पहुचे, जहां से हमने देहरादून के लिए बस ली। रास्ते में झील व प्राचीन शिव मन्दिर देखा और हम पहुच गये उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में। यहां पहुचते-पहुचते समय भी अधिक हो चला था और हमें भूख भी लग आई थी इसलिए हमने यहां खाना खाया और फिर बस पकड़ी हरिद्वार की। बस में हमने खूब मस्ती की, अन्ताक्षरी खेली और पूरा सफर ऐसे ही कट गया। एक धण्टे में हम अपने घर हरिद्वार वापस आ गये लेकिन लगता है जैसे हम खुद को वहीं छोड़ आए हैं। साथ हैं तो बस वहां की मीठी-मीठी यादें.........




   सच में इस पूरी यात्रा का अनुभव बहुत ही अनोखा रहा। वहां लगा कि बस हमारा सफर वहीं रूक जाए। अगर आप भी धरती पर जन्नत देखना चाहते हैं तो यहां अवश्य जाएं। हमने वहां पर इतने सुन्दर दृश्य देखे जिन्हें कैमरे में कैद करना मुश्किल है उन्हें तो केवल आंखों में बसाया जा सकता है। फिर भी अपने कैमरे को हमेशा अपने साथ रखें जिससे बाद में वह आपकी यादों को ताजा कर सके। साथ ही प्लानिंग करके जाएं तथा गर्म कपड़े जरूर लेकर जाएं क्योंकि पहाड़ों पर कभी भी मौसम बदल सकता है और ठण्ड पड़ सकती है। जिन्हें पहाड़ों पर जाते समय वोमेटिंग की समस्या हो वो अपने लिए आवश्यक सामग्री जैसे- दवाएं, नींबू, इलायची, टॉफी आदि अपने साथ रखें।

Monday, October 17, 2011

यादें





हर किसी की जिन्दगी में होती हैं यादें.....
एक कमी का एहसास कराती हैं यादें,
जीवन के हर मोड़ पर याद आती हैं यादें.....
कभी हंसाती हैं तो कभी रूलाती हैं यादें,
ये यादें ही तो हैं जो हमारे दिल के पास होती हैं....
ये यादें ही तो हैं जो जीने की आस होती हैं।
        ऐसे ही यादों का कारवां चलता रहता है....
        मिलने-बिछुड़ने का सिलसिला बढ़ता रहता है,
        कुछ दिल में बस जाते हैं यादें बनकर....
        तो कुछ याद आते हैं यादें बनकर,
        ये यादें ही हैं जो बहुत खास होती हैं....
        ये यादें ही तो हैं जो जीने की आस होती हैं।
तभी तो जिन्दगी का अनमोल तोहफा कहलाती हैं यादें....
वक्त बेवक्त अपनी याद दिलाती हैं यादें,
कभी यादों में बातें तो कभी बातों में यादें....
कभी सोचने बैठो तो याद आती हैं वो हसीं मुलाकातें,
ये यादें ही तो हैं जो महज एक इत्तेफाक होती हैं.....
ये यादें ही तो हैं जो जीने की आस होती हैं।