लोग हर मोड़ पर अटकते क्यों हैं ?
छोटी-सी हालत से डर जाते हैं ,
जब इतना डरते हैं तो घर से निकलते क्यों हैं ?
जब इतना डरते हैं तो घर से निकलते क्यों हैं ?
मैं न जुगनू हू, न दिया हू, न तारा हू ,
फिर रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं ?
फिर रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं ?
नींद से मेरा कोई वास्ता है नहीं ,
तो ख्याब आकर मेरी छत पर टहलते क्यों हैं ?
तो ख्याब आकर मेरी छत पर टहलते क्यों हैं ?
जिस मोड़ पर संभलना होता है सबको ,
उसी मोड़ पर आकर बहकते क्यों हैं ?
उसी मोड़ पर आकर बहकते क्यों हैं ?
कहना चाहती हू उनसे,
पर अल्फाज़ होठों पर आकर रूकते क्यों हैं ?
पर अल्फाज़ होठों पर आकर रूकते क्यों हैं ?
अभी वक्त है जान लो उस सच को ,
फिर मत कहना मेरे साथ ही ऐसा क्यों है ?
फिर मत कहना मेरे साथ ही ऐसा क्यों है ?
No comments:
Post a Comment