Sunday, August 28, 2011

प्रकृति की गोद में देवदर्शन यात्रा श्री बद्रीनाथ की


गर्मी की छुट्टियों का सदुप्रयोग अगर भगवान बद्री विशाल के दर्शन करके किया जा सके तो इससे अच्छी बात और क्या होगी। कुछ जगह ऐसी होती हैं जहां कदम रखते ही मन पवित्र अनुभूतियों से भर जाता है, श्रद्धा से शीश झुक जाता है। हिमालय की गोद में स्थित बद्रीनाथ की डगर पर बढ़ते ही ओम की गूंज, शंखनाद, हवन का धुआं और सुगंध का एहसास होने लगता है और हम पहुॅच जाते हैं देवदर्शन को बद्रीनाथ। देवभूमि उत्तराखण्ड ही एक ऐसी जगह है जहां प्रकृति और उसका कृतिकार दोनों एक साथ मौजूद हैं। पहाड़, नदी, झरने, हर तरफ हरियाली तथा सुंदर मौसम सभी यहां उपलब्ध है। धामों के साथ-साथ यहां कई प्राकृतिक और ऐतिहासिक स्थल भी दर्शनीय हैं।
   

हमने अपनी यात्रा हरिद्वार से शुरू की, जहां से बद्रीनाथ की दूरी 292 किमी0 तथा समुद्र तल से  ऊंचाई 10,300 फुट है। हमने सुबह बहुत जल्दी ही यात्रा शुरू की। हरिद्वार में हर की पौड़ी पहुंचकर हमने गंगा में डुबकी लगाई। वहां से स्नान-पूजन के बाद हमने ऋषिकेश के लिए प्रस्थान किया। इसके पश्चात् सबसे पहले हम देवप्रयाग पहुंचे। यहां भागीरथी और अलकनंदा नदियों का संगम होता है। साथ ही ये पंच प्रयाग जिनमें देवप्रयाग, रूद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, सोनप्रयाग व विष्णुप्रयाग हैं। इसके बाद रूद्रप्रयाग से कर्णप्रयाग की ओर चले। इसके आगे नंदप्रयाग है जो मंदाकिनी और अलकनंदा का संगम स्थल है।

    इसके आगे जोशीमठ आता है जिसे ज्योतिर्मठ भी कहते हैं। यह आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार मठों में से एक है। इसे बद्रीनाथ का प्रवेश द्वार भी कहते हैं। जाड़ों में जब अत्यधिक बर्फ के कारण बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद किए जाते हैं तब छह माह तक बद्रीविशाल की पूजा यहीं की जाती है। यहां रात में रूकने के बाद हमने सुबह आगे की यात्रा शुरू की। 30 किमी0 पर आखिरी प्रयाग विष्णुप्रयाग आता है, जहां धौलीगंगा व अलकनंदा का संगम होता है। इसके साथ ही हम पहुंचते हैं उस स्थल पर जिसके लिए हमारे मन में असीम इच्छाएं थीं। जयकारों के बीच पहाड़ों के पीछे से निकलकर जैसे ही हम बाहर आए, हमें वहां परम धाम बद्रीधाम के दर्शन मिले।

   बद्रीनाथ एक तीर्थ स्थल होने के साथ-साथ एक स्मरणीय पर्यटन स्थल भी है। पहले ये बदरी वन के नाम से जाना जाता था। बदरी का शाब्दिक अर्थ बेर और बादल होता है। बेर के वृक्ष तो अब यहां पाए नहीं जाते, परंतु बादल लगातार पर्यटकों के साथ आंख-मिचौली खेलते हैं। यहां का मौसम काफी अस्थिर रहता है। बद्रीनाथ पहुंचकर यदि रात्रि में बाहर निकलेंगे तो लगेगा कि आकाश इतना पास है कि तारों से बातचीत की जा सके। बद्रीनाथ वैष्णव लोगों के लिए सबसे उच्च मंदिर माना जाता है। यहां भगवान विष्णु बद्रीनाथ के रूप में विराजते हैं। मंदिर के बाहर ठीक नीचे गर्म पानी का कुण्ड है, इसे तप्तकुण्ड कहते हैं। यहां स्नान कर यात्री मंदिर के दर्शन करते हैं। इसके निकट ठण्डे जल का स्त्रोत नारदकुण्ड नाम से जाना जाता है। मंदिर के ठीक पीछे नीलकंठ पर्वत है।

   बद्रीनाथ की यात्रा के दौरान प्राकृतिक सौंदर्य का बखान नहीं किया जा सकता। एक तरफ बर्फ से आकाश छूती चोटियां, दूसरी ओर अनेक ग्लेशियर देखने को मिलते हैं और तीसरी तरफ घाटी में अलकनंदा भी अपना वेग दिखाती रहती है। बद्रीनाथ का संपूर्ण मार्ग गहरी घाटियों, घुमावदार चक्करों एवं प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण है। इस मार्ग में अनेक दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें फूलों की घाटी, हेमकुण्ड साहिब, देवप्रयाग, रूद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग एवं जोशीमठ आदि प्रमुख हैं।

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